खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से है. पौराणिक कथा के अनुसार, खाटू श्याम पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे.
उनका असली नाम बर्बरीक था.
बर्बरीक ने पांडवों की विजय के लिए अपना शीशदान कर दिया था. बर्बरीक के इस बलिदान से श्रीकृष्ण बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में वह अपने नाम से पूजे जाएंगे.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का शीश खाटू नगर में रखा था.
इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है.
खाटू श्याम मंदिर की आधारशिला 1720 में रखी गई थी. यह मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित है.
खाटू श्याम को कलियुग का सबसे प्रसिद्ध भगवान माना जाता है. कहा जाता है कि श्याम बाबा से भक्त जो भी मांगता है, वो उन्हें लाखों-करोड़ों बार देते हैं. यही वजह है कि खाटू श्याम को लखदातार के नाम से भी जाना जाता है.
बर्बरीक के धड़ की पूजा हरयाना के हिसार में स्थित मंदिर में की जाती है.
खाटू श्याम को कलियुग का सबसे प्रसिद्ध भगवान माना जाता है.
माना जाता है कि खाटू श्याम भगवान कृष्ण के कलयुगी अवतार हैं. खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है.
खाटू श्याम को लखदातार भी कहा जाता है.
मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे भाव से खाटू श्याम का नाम उच्चारण करता है, उसका उद्धार संभव है. खाटू श्याम की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं.
खाटू श्याम के बारे में कुछ और बातें:
खाटू श्याम, भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक हैं.
बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे.
बर्बरीक ने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे.
खाटू श्याम को जरूरतमंदों के सहायक के रूप में पूजनीय माना जाता है.
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.
खाटू श्याम मंदिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी.
खाटू श्याम को प्रसन्न करने के लिए:
उनकी प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाएं.
उन्हें स्वच्छ कपड़े पहनाएं.
आज भी वह माता को दिए वचनों के अनुसार इस संसार में हारने वाले इंसान का साथ देते हैं तभी उन्हें हारे का सहारा कहा जाता है.
