अहंकार का सबसे महान गुण है, की जो व्यक्ति अहंकार को धारण करता है, ये उसके पुण्य खत्म कर देता है
मनुष्य के अंदर थोड़ा सा बल, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य और पद मिलने से वह अहंकारी बन जाता है और हर समय अपना ही गुणगान करता रहता है। उसे अपने से श्रेष्ठ कोई नहीं दिखता। इन्हीं कारणों से उसका पतन होता है।
— ‘निभ पाता कैसे भला तेरा मेरा प्यार, तेरे मेरे बीच थी ‘मैं’ की इक दीवार।’
यह मैं यानी अहंकार ही सबसे बड़ी बाधा है जो हमें ख़ुशी, संतुष्टि, रिश्तों और सम्मान से वंचित करके सारा जीवन नरक बना देता है।
इसलिए पहले पहचानिए कि यह अहंकार मन में किन रूपों में घर किए रहता है और फिर इसे निकाल फेंकिए।
एक आचार्य कुछ साधकों को ध्यान करवा रहे थे। उन्होंने कहा कि सभी साधक आंखें बंद करके अपना ध्यान ज़मीन से बीस फ़ुट ऊपर ले आएं। अब ध्यान को वहीं रोक लें और वहीं से सभी साधकों को देखें। साधकों के बीच स्वयं को भी देखें। अन्य साधकों की अपेक्षा स्वयं की आकृति अधिक स्पष्ट और ऊंची दिखलाई पड़ रही होगी? यही अहंकार है। ध्यानावस्था में ही नहीं, चेतन अथवा अचेतन किसी भी अवस्था में स्वयं को दूसरों से बेहतर, सबसे अलग मानने की भावना अहंकार है।
मैं बड़ा हूं, मैं सुंदर हूं, मैं सबसे योग्य हूं, मैं सबसे ईमानदार हूं, सभी लोग मेरा बहुत आदर करते हैं, सभी मुझसे डरते हैं, सभी मुझे पसंद करते हैं, मेरी योग्यता के कारण लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं—
इस प्रकार के सभी भाव अहंकार को ही दर्शाते हैं। जब हम केवल अपने और अपने ही बारे में सोचते हैं तो दूसरों के बारे में सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता। इस क्रम में हम अन्य सभी लोगों के व्यक्तित्व अथवा दृष्टिकोण को नज़रअंदाज़ कर देते हैं और इसके लिए हमारा अहं भाव ही पूर्ण रूप से उत्तरदायी होता है। एक व्यक्ति हिंदी में आपसे कुछ पूछ रहा है और आप हिंदी जानते हुए भी उसका जवाब अंग्रेज़ी भाषा में दे रहे हैं और वह भी अंग्रेज़ों की तरह कंधे उचका-उचकाकर। यह अहंकार नहीं तो और क्या है? कभी भाषा के नाम पर, कभी नस्ल व धर्म-जाति के आधार पर, कभी क्षेत्र विशेष के रूप में, कभी रुपए-पैसे के द्वारा, कभी पद-प्रतिष्ठा के द्वारा, कभी बाहुबल के द्वारा अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास अहंकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
पतन का पक्का मार्ग है ये चूंकि अहंकार एक दुर्गुण है, एक मनोरोग है अतः इसका प्रभाव भी नकारात्मक ही होगा।
अहंकारी व्यक्ति स्वयं को सर्वज्ञ व सर्वगुणसंपन्न मानता है, अतः वह निरंतर सीखते रहने की प्रक्रिया से कट जाता है और वास्तव में अल्पज्ञ व अनुभवहीन बना रहता है।
अहंकारी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और अपने कार्यों को उत्कृष्ट मानता है, इसलिए दूसरे लोगों के अनुभव से लाभ उठाने का प्रयास नहीं करता। अतः कभी-कभी नुक़सान में रहता है।
अहंकारी व्यक्ति हमेशा चापलूस व्यक्तियों से घिरा रहता है जो उसकी कमियों की तरफ संकेत नहीं करते, अतः वह अपना सही मूल्यांकन कर अपनी उन कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं कर सकता।
अहंकारी अपने अहंकार की तुष्टि के लिए हर कार्य करता है, सो वह विवेकशील नहीं हो सकता। जिस व्यक्ति का विवेक नष्ट हो जाता है उसका शीघ्र पतन निश्चित है।
अहंकारी की तुष्टि के लिए व्यक्ति कई बार ग़लत काम भी कर बैठता है और उसका दुष्परिणाम उसे ही भुगतना पड़ता है। विषम परिस्थितियों में ऐसे लोगों को बचाने के लिए भी कोई तैयार नहीं होता।
अहंकारी व्यक्ति अहंकार व अस्वीकृति के कारण योग्य व्यक्तियों से दूर भागता है या योग्य व्यक्ति उसके व्यवहार के कारण उससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। दोनों का दुष्परिणाम अहंकारी व्यक्ति को ही भुगतना पड़ता है।
अहंकारी व्यक्ति अच्छे मित्रों से वंचित रहकर एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त होता है। आदतों के कारण वह समाज में उपहास का पात्र भी बनता है।
अहंकारी व्यक्ति हमेशा असंतुष्ट रहता है, शंकित रहता है अतः उसका मानसिक संतुलन भी कई बार बिगड़ जाता है। वह तनाव में रहने लगता है। ऐसी स्थिति में उसको कई मनोदैहिक व्याधियां भी घेर लेती हैं और अहंकार का यह दुष्चक्र अभेद्य हो जाता है।
अहंकारी के परिवार का सामाजिक व आर्थिक जीवन प्रभावित होता है। अहंकारी व्यक्ति का परिवार के साथ भी ठीक तालमेल नहीं बैठता। वह घर-परिवार से कट जाता है।
अहंकारी व्यक्ति
... दूसरों से सहायता लेने से डरता है। वह दूसरों की मदद इसलिए नहीं लेना चाहता क्योंकि कार्य या सफलता का सारा श्रेय स्वयं लेना चाहता है।
... हमेशा हर सामान्य बात पर दूसरों से प्रशंसा पाना तथा उनकी स्वीकृति की मोहर लगवाना चाहता है और इसी के लिए चिंतित रहता है।
... हमेशा दूसरों लोगों से अपनी तुलना करने में लगा रहता है और वह किसी भी क़ीमत पर किसी से कमतर नहीं दिखना चाहता।
... हमेशा पैसे के प्रदर्शन के साथ-साथ अपने आप को हर क्षेत्र में प्रदर्शित करने की कोशिश करता है। जबकि हर व्यक्ति की एक सीमा होती है। पैसे की ही नहीं जानकारी की भी। यह तथ्य धन-दौलत, शोहरत, पद-प्रतिष्ठा व अन्य क्षेत्रों में भी उतनी ही शिद्दत से लागू होता है। अहंकारी साहित्य-संस्कृति, कला, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, राजनीति- कोई भी क्षेत्र क्यों न हो हर जगह अपनी टांग अड़ाने का प्रयास करता है। हर विषय पर बढ़-चढ़कर बोलने की कोशिश करता है। हर बात पर बहस करता है और कुतर्कों द्वारा स्वयं को सही साबित करने का प्रयास करता है।
... हमेशा असंतुष्ट रहता है अतः अधिकाधिक पाने के लिए लालायित रहता है। वह लालची हो जाता है। उसे आवश्यकता हो या न हो, दूसरों को दिखाने व उन पर रौब जमाने के लिए वह हर चीज़ की कामना करता है।
... दूसरों की मदद लेने से तो परहेज़ करता है लेकिन दूसरों पर अहसान टेकने के लिए उनकी मदद करने के अवसर नहीं चूकता। उसकी इच्छा होती है कि सभी लोग अभावग्रस्त बने रहें ओर इस तरह उसे लोगों की मदद करके उन पर रौब ग़ालिब करके अपने अहंकार की तुष्टि का मौक़ा मिलता रहे।
