पुरातन समय में शादी विवाह गैर घर से करना अशुभ माना जाता था, और ये गरीबी का प्रतीक भी माना जाता था,
पहली बात तो शादी अगर मन्दिर में हो, वो तो बहुत ही बेहतर, न हो, तो कम से कम अपने घर में तो हो, शादी के सारे शुभ कार्य खुद के ही घर में होने चाहिए, हाँ, खाना आदि की व्यवस्था चाहे तो अन्यत्र कर सकते हैं, और अगर सम्भव हो, तो वो व्यवस्था भी घर पर ही हो, शादी विवाह को शुभ कर्मो में माना जाता है, और शुभ कर्म तो अपने घर में किये नहीं, शुभता तो दूसरे के घर में की, दूसरी जगह की, तो शुभता दूसरी जगह की, तो तुम्हारे घर में शांति कहाँ से आयेगी, तुम्हारे यहाँ तो चिक चिक ही आयेगी, तनाव ही आयेगा, शादी विवाह में आस पास के लोग, आपके पूर्वज, घर मे देवता वाट जोहते रह गये, की मंगल कार्य की बेला में हम भी खुश होंगे, खूब भर भर कर आशीर्वाद देंगे, लेकिन जिसके घर में विवाह था, वही घर से बाहर, तो काहे की खुशियाँ, काहे का आशीर्वाद, कुल देवता, घर देवता, तो गायब, फिर उस घर में इंतजार करते हैं, भूत प्रेत, और आज कल वही आशीर्वाद दे रहे हैं, भर भर कर, तभी 70% से ज्यादा शादियाँ टिक नहीं पा रही हैं, या तो तलाक़ हो जा रही है, या भी दुनिया भर का झमेला, वैवाहिक जीवन में, इसलिए संभव हो, तो शादी विवाह का महोत्सव अपने घर पर ही मनाये, बड़े ताम् झाम् की इतनी जरूरत नहीं,
शादी में हम ज्यादा से ज्यादा पैसा अपने अहंकार की पुष्टि के लिए ही तो खर्च करते हैं, इसलिए तो इतना खर्चा करते हैं, ac रूम बुक करवाते हैं, 30, 40,100 गाड़िया बुक करवाते हैं, इससे तो 2,3 दिन की ही अहंकार की पुष्टि होती है, घर से शादी करें, और आधा बचा पैसा घर को, मेन्टेन करने में, परिवार को, खुद को मेन्टेन करने में लगा दें, इससे पूरी ज़िंदगी आपके यहाँ जो आयेगा, सब कुछ चका चक देख कर कहेगा, बड़े जलवे हैं, इससे हमेशा आपके अहंकार की पुष्टि होती रहेगी,
अगर थोड़े भक्ति मार्गी हैं, तो बचे पैसे से दान धर्म कर लें, तीर्थो के दर्शन कर लें, वो भी अच्छा होगा, आपके लिए भी, आपके घर परिवार के लिए भी,
लेकिन कोशिश यही करें, की विवाह जैसा शुभ कार्य का आयोजन अपने घर से ही करें
