कर्म प्रधान विश्व रचि राखा. जो जस करहि सो तस फल चाखा. होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा, दोनों में भेद भी है, समानता भी है, समझें


 कर्म प्रधान विश्व रचि राखा.

जो जस करहि सो तस फल चाखा.

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा, 

दोनों में भेद भी है, समानता भी है, समझें


संसार कर्म से ही चलता है, बिना कर्म से कुछ भी नहीं हो सकता, केवल नौकरी करना, कारोबार करना ही कर्म नहीं हैं, आपके द्वारा की गई सभी गतिविधियां कर्म कहीं जायेगी, और कर्म के साथ कर्म का भाव चलता है, समान कर्म के भाव में बदलाव से फल बदल जाता है, जैसे बोलना कर्म है, वो आपको सम्मान दिलाएगा, या अपमान करवाएगा, ये आपके बोलने के भाव पर निर्भर करता है, भाव अच्छा होता है या बुरा, जैसे कर्म करेगें, जिस भाव से कर्म करेगें, वैसा ही फल मिलेगा, 

अब बात 

होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा

की, ये भी बिल्कुल सत्य है, कैसे, 

जब आप अपने सभी कर्मो को ईश्वर को समर्पित करते हुए करेगें, तो फिर आप एक यंत्र हो जायेंगे, और कर्ता ईश्वर हो जायेंगे, और जब कर्ता ईश्वर हो जायेंगे, तो कर्ता के किये गए कर्म का फल ईश्वरीय होगा, जिस यंत्र को ईश्वर संचालित करेगा, उसका तो फल अच्छा ही होगा, 

ईश्वर तो सब में हैं, लेकिन जब हम उसको कर्म समर्पित करने लगते हैं, तो फिर वो उस व्यक्ति में विशेष जाग्रत अवस्था में आ जाता है, और फिर वो जो चाहता है, वही होता है, अच्छा ही होता है, 

फिर तर्क वितर्क का कोई मतलब ही नहीं, सब कुछ ईश्वर मय,