यदि हृदय में प्रेम नहीं हो तो भक्ति भी गेम हो जाती है। यदि हृदय में भाव नहीं हो तो कुछ प्रभाव नहीं होता है।


 लोगों में भगवान के नाम पर शक क्यों पनपता जा रहा है कि भगवान है ही नहीं?

हमलोग हरि-कथाओं में सुनते हैं और धार्मिक ग्रन्थों में पढ़ते हैं कि भगवान की भक्ति करने से दुख-क्लेश समाप्त हो जाते हैं और सुख की प्राप्ति होती है।


निज अनुभव अब कहऊ खगेशा। बिनु हरि भजन न जाहिं क्लेशा।।


भगति तात अनुपम सुख मूला। मिलहिं जे संत होहिं अनुकूला।।


सुखी मीन जहँ नीर अगाथा। जिमि हरि शरण न एकउ बाधा।।


अंधकार बरु रवि ही नसावै। राम विमुख न जीव सुख पावै।।


जीवन में जब कोई विपत्ति आ जाती है या लोग किसी आफत में फँस जाते हैं तब उन्हें ये सब पंक्तियाँ याद आने लगती हैं। वे सोचते हैं कि भगवान का नाम जप लें, कुछ पूजा-पाठ कर लें, कुछ चढ़ावा चढ़ा लें, कहीं तीर्थों में नहा लें  तो हमारे दुःख अवश्य दूर हो जाएँगे। लोग भक्ति को भी व्यापार समझ लेते हैं। पर भक्ति में ऐसा होता नहीं है।


यदि हृदय में प्रेम नहीं हो तो भक्ति भी गेम हो जाती है। यदि हृदय में भाव नहीं हो तो कुछ प्रभाव नहीं होता है।


भगवान श्रीराम कहते हैं— निरमल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।


अपने अंदर बुराइयों को पालते हैं, छल-कपट भरकर रखते हैं। परमात्मा के बनाए जीवों के प्रति क्रूरता बरतते हैं। हृदय में श्रद्धा नहीं, आस्था नहीं और चाहते हैं कि प्रभु प्रसन्न हो जाए, हमारे दुखों को हर ले। यह होनेवाला नहीं है इसलिए होता भी नहीं है।


अब सोचने की बात है कि अपना काम रोजगार छोड़कर भगवान के लिए समय निकालो, दिनभर भूखे रहो, पूजा-पाठ करो, पूजा में खर्च करो, भगवान को मेवा-मिष्टान्न भोग लगाओ, आरती गाओ और लाभ कुछ दीखता नहीं। भला भक्त के मन में खीझ होगी कि नहीं। बस यही दशा है आज के भक्तों की।


लोग सोचते हैं कि भक्ति करके हम भगवान का उपकार करते हैं और बदले में वे हमारा उपकार कर देंगे। जितनी जल्दी हम पूजा कर दिए उतनी ही जल्दी हमारा उपकार भी हमको दीखना चाहिए। ऐसे लोगों को मनोवांछित परिणाम नहीं मिलने से भगवान पर शक तो होगा ही। मीरा को, शवरी को, तुलसीदासजी को और कबीर साहब को तो कभी भगवान पर शक नहीं हुआ।


भक्ति में पवित्रता, सदाचारिता, प्रेम, आस्था, समर्पण, सद्युक्ति, धैर्य, निरंतरता; ये सब चाहिए तब कहीं इसके सुपरिणाम दृष्टिगोचर होते हैं। कमी भगवान में नहीं, कमी तो हमारे-आपके अंदर है। पर हम उन्हें देखना नहीं चाहते।