प्रेम इतना कम क्यों है दुनिया मे

 प्रेम इतना कम क्यों है दुनिया मे



मनुष्य कृत्रिम हो गया है, झूठा हो गया है, पाखंडी हो गया है, इसलिए प्रेम असंभव हो गया है। फिर जिस समाज में हम जीते हैं, यह समाज घृणा पर आधारित है। चोट लगेगी तुम्हें यह बात जान कर, मगर मजबूरी है,सच जैसा है वैसा ही कहना होगा। जिस समाज में आज तक मनुष्य जीता रहा है, वह समाज ईष्या पर, वैमनस्य पर, प्रतिस्पर्धा पर, प्रतियोगिता पर, घृणा पर, शत्रुता पर खड़ा हुआ है। यह समाज प्रेम को स्वीकार नहीं करता।और ये समाज जिस आधुनिक प्रेम को स्वीकारता भी है, उसमें प्रेम से ज्यादा वासना का पुट होता है, प्रेम तो निश्चल होता है, और जहां प्रेम में निश्चलता होती है, वहीं प्रेम परिपूर्ण होता है, ये आज वाला love वाला प्रेम नहीं, की आज हमसे, कल उनसे, कल किसी और से, 

प्रेम देखना हो, तो रामायण देखो, राम का वचनों के प्रति प्रेम, लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम, सीता का राम के प्रति प्रेम, हनुमान का अपने स्वामी राम के प्रति प्रेम, भरत का प्रेम, उर्मिला का प्रेम, निश्चल प्रेम का स्वरूप जानने के लिए आपको कम से कम राम चरित मानस पढ़नी ही होगी, तब आपको पता चलेगा, की प्रेम असल में होता क्या है, 


यह समाज प्रेम के सारे रास्ते अवरुद्ध कर देता है। यह प्रेमी नहीं चाहता, यह सैनिक चाहता है। यह प्रेमी नहीं चाहता, प्रतियोगी चाहता है। प्रेमी होंगे तो संगीनें लेकर कौन छातियों में भोंकेगा? प्रेमी होंगे तो बांसुरी बजेगी, संगीनें खो जाएंगी। प्रेमी होंगे तो मृदंग पर थाप पड़ेगी, लेकिन युद्ध के नगाड़े बंद हो जाएंगे।


प्रेमी होंगे तो जीवन में आनंद होगा, उत्सव होगा, स्पर्धा नहीं होगी। प्रेमी होंगे तो प्रभु को पाने की अभीप्सा होगी, लेकिन धन और पद पाने की दौड़ नहीं होगी।


यह समाज महत्वाकांक्षा सिखाता है। छोटे-छोटे बच्चों में हम महत्वाकांक्षा का जहर भरते हैं। फिर कैसे प्रेम पैदा हो ?