माया महा ठगनी हम जानी"


 माया महा ठगनी हम जानी"  


मन में उठने वाली सभी लालसाएँ और इच्छाएँ हमें ठगने वाली होती हैं. कबीर के मुताबिक, ये अनगिनत इच्छाएँ और लालसाएँ माया का ही रूप हैं. यही माया हमें अवांछित रास्तों की ओर धकेलती है. इस माया में तीनों प्रकार के गुणों यथा- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का वास होता है और वह अपने इन्हीं गुणों से लोगों को अपने जाल में फँसाती है,

 माया अपने आकर्षण में फँसाकर सबको पथभ्रष्ट कर देती है. इसके मायाजाल से सिर्फ़ संसारिक मनुष्य ही नहीं, देवता भी फँसे हैं. 


माया बहुत बड़ी ठगनी 

उसके हाथ में त्रिगुण की फाँसी का फंदा है और होंठों पर मीठे बोल.


ईश्वर की परम भक्ति तभी मिलती है, जब माया जाल से परे हो जाया जाय, और ये बड़ा, बहुत बड़ा, बहुत बहुत बड़ा कठिन काम है, ये माया लक्ष्मी, नारायण की निज प्रियतमा हैं, ये सांसारिक व्यक्ति को नारायण के पास जाने से रोकती हैं, बड़े बड़े सिद्ध महात्मा को भी डिगा देती हैं, लेकिन लगातार नाम जप से माया पर विजय मिल जाती है, और जिसने नारायण को पा लिया, माया तो उसके पीछे पीछे चलती है, इसलिए की कही अपने नारायण के प्रिय भक्त को कोई दुःख न हो जाये, क्युकी भक्त दुःखी, तो नारायण पहले दुःखी, और ईश्वर तो इतने दयालु हैं, की भक्त के दुःख सारे अपने ऊपर ले लेते हैं, माया मतलब लक्ष्मी को बताते भी नहीं, इसलिए लक्ष्मी माँ हमेशा नारायण के हाव भाव देखती रहती हैं, इसलिए नारायण के परम भक्त श्री युक्त होते हैं, लेकिन उनकी लिल्पसा नारायण में होती है, 

लगातार नाम जप से एक न एक दिन नारायण मिल जाते हैं, और आप कोई नाम जप करो, वो नारायण को ही समर्पित होगा,


 लेकिन बड़ा कठिन है भाई, असंभव नहीं है, लेकिन कठिन बहुत है, नियम कोई नहीं है, स्त्री करे, पुरुष करे, गृहस्थ करे, महात्मा करे, किसी समय करे, नाम जप मे नियम कोई नहीं है, नाम जप खुद ही आपको सब दिला देगा, बिना मांगे सब कुछ, 


जय हो भक्त और भगवान् की