भक्ति की चरम सीमा, प्रेम भक्ति, कृष्ण भक्ति


 भक्ति की चरम सीमा, प्रेम भक्ति, कृष्ण भक्ति


वैसे भक्ति पुराणों में कई प्रकार की बताई गई है, लेकिन सब भक्तियों में जो कृष्ण भक्ति है, वो भक्ति का सर्वोच्च है, कृष्ण भक्ति प्राप्त कैसे होती है, जब प्रेम की अधिकता हो जाती है, यहाँ तक पहुँचने का सरल साधन क्या है, कृष्ण भक्ति को आसानी से प्राप्त करने के लिए आपको पहले शिव की भक्ति करनी होगी, और जब शिव जी आपकी भक्ति से प्रसन्न हो जायेंगे, तो आपको राधा की भक्ति की तरफ अग्रसर कर देगें, और राधा जी की भक्ति से आपको कृष्ण की भक्ति आसानी से प्राप्त हो जायेगी, राधा कौन है, राधा कृष्ण की आत्मा है, राधा भाव हैं, कृष्ण रस हैं, राधा जी का निवास स्थान कृष्ण जी का हृदय है, या यह भी मान सकते हैं, की कृष्ण का हृदय ही राधा हैं, कृष्ण की भक्ति से जीव निष्काम हो जाता है, क्योंकि कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण है, संसार में जो कुछ भी है, सब की पराकाष्ठा कृष्ण हैं, संपूर्ण जगत की पूर्णता कृष्ण हैं, और कृष्ण की पूर्णता राधा हैं, राधा जी बड़ी करुणा मई हैं, राधा जी की भक्ति से जीव इतना निर्मल हो जाता है, की कृष्ण न चाहते हुए भी जीव को अपना लेते हैं, और जिसको कृष्ण ने अपना लिया, उसका फिर पूर्ण उद्धार हो गया,


बहुत से मानुष ये सोचेंगे, की कृष्ण की भक्ति सीधे क्यों नहीं हो सकती, ये शिव और राधा की भक्ति का क्या मतलब, ये अनुभव की बात है, आप बड़े बड़े गुरुओ से भी इसका भेद जान सकतें हैं, 


कृष्ण की भक्ति प्रेम भक्ति कैसे है, इसलिए क्योंकि कृष्ण का भक्त उनका भक्त नहीं होता, उसको वो अपना मित्र बना लेते हैं, अपना यार बना लेते हैं , और संसार में यारी निभाना सबसे कठिन हैं, क्योंकि यारी तब तक निभ ही नहीं सकती, जब तक यार पर सब निछावर न कर दिया जाए, और कृष्ण अपने यार से क्या निछावर मांगते हैं, यार का सब कुछ जो उसका अपना हैं, तभी उसको यार बनाते हैं, यार का अपना क्या है, शरीर तो कृष्ण का ही दिया हुआ है, यार का अपना है, उसका काम, क्रोध, मोह, तृष्णा, माया, अहंकार, कपट, झूठ, उसका मन, और संसार में ये सब सौपना ही बहुत कठिन हैं, इसलिए कृष्ण भक्ति सरल दिखते हुए भी बहुत कठिन है, 


कृष्ण इतने सरल हैं, की उन्हें सरल ही सखा भाते हैं, जिनमे मैं नहीं होता, कृष्ण भक्तों में मैं होता ही नहीं, मैं की पूर्ण समाप्ति ही कृष्ण मय हो जाना है, अगर मैं रह गया, तो कोई भी देवता सध जाये, कृष्ण नहीं सधने वाले, इसलिए जब कोई भक्त शिव जी का सहारा लेता है, तो उसका बहुत सा मय तो शिव की भक्ति में ही खत्म हो जाता है, और रहा सहा राधा जी की भक्ति से खत्म हो जाता है, और जैसे ही जीव मैं हीन हो जाता है, वो कृष्ण मय हो जाता है