सेवा भाव, क्यों, किसके लिए,
हमारे जीवन का परम उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है, ये तो सर्वत्र सत्य बात है, अब ये कैसे होगा, बड़ा कठिन मार्ग है, बड़ा सरल भी, कठिन इतना की बड़े ज्ञानी थाह न पा सके, सरल इतना की मूढ़ मति परम पद प्राप्त कर ले गये,
ईश्वर प्राप्ति में बाधक क्या है, माया, ईश्वर और मानव के बीच में माया की दीवार है, परदा है, और ये परदा, ये दीवार बड़ी मजबूत है, इसको गिराने में वर्षों नहीं, जन्मों लग जाते हैं, और जो भेद जान गया, उसको कोई बाधा नहीं, भेद जानना ही बड़ा मुश्किल है,
भेद क्या है, भेद है मैं का समूल नाश, और जिसका मैं समूल नाश हो गया, उससे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं,
मैं का माया जाल कितना कठिन है, थोड़ा हिंट लीजिये, आप खुद को अज्ञानी कहिए, आप खुद को मूर्ख कहिये, आप खुद को पागल कहिये, खुद को भिखारी कहिए, देखिये मैं आपको रोक देगा, आवाज आयेगी, की मैं ज्ञानी हूँ, मैं बुद्धि मान हूँ, मैं चतुर हूँ, मैं पैसे वाला हूँ, देखिये, मैं ने आपकी कोई चलने दी,
यही मैं है,
एक और कार्य करिये, भगवान् की पूजा पाठ का विचार करिये, मन्दिर जाइये, और भगवान् की पूजा के लिए सब कुछ लेकर जाइये, और अंदर जाकर प्रार्थना करिये, ईश्वर मैं आपकी पूजा के लिए ये फूल, ये प्रसाद लाया हूँ, मैं ये लाया हूँ, मैं वो लाया हूँ, यहाँ भी आपका मैं आ गया,
इसी मैं को खत्म करना है, कुछ भी हो, मेरा कुछ भी नहीं, मैं हूँ ही नहीं, सब ईश्वर का है, जब आप सब ईश्वर को सौंप कर कार्य करेगें, तो आपके भाव बदल जायेंगे, की सब कुछ ईश्वर कर रहें हैं, ये दास तो निमित्त मात्र है, और जब ये भरोसा बहुत मजबूत हो जायेगा, तब ईश्वर आपके सामने होगेँ, ईश्वर का साक्षात्कार हो जायेगा,
और जब मैं का विनाश होगा, तो आपसे कुछ गलत कार्य ही नहीं होगें, क्यों की जब आपने मैं को खत्म कर दिया, फिर सब कुछ तो आप ईश्वर को साक्षी मानकर कर रहे हैं, और ईश्वर को साक्षी मानकर आप गलत कार्य कर ही नहीं सकते, और अगर ईश्वर को साक्षी मानकर आप गलत कार्य कर रहे हैं, तो फिर आपका मैं गया ही नहीं,
अब ये मैं का विनाश कैसे होगा,
तरीके बहुत हैं, लेकिन सबसे सरल नाम जप, नाम जप बढ़ता जायेगा, मैं घटता जायेगा,
