सांसारिक शरीर और भागवतिक शरीर में क्या अन्तर है


 सांसारिक शरीर और भागवतिक शरीर में क्या अन्तर है


सांसारिक शरीर और भागवतिक शरीर में अंतर केवल भाव का है, 

सांसारिक शरीर भोग करता है, घर, परिवार सब से मोह रखता है, सब कुछ अपना समझता है, और सांसारिक भोगों की प्राप्ति के लिए सारे दुष्कर्म करता है, अपने परिवार के सुख के लिए दूसरे सांसारिक लोगों से छल, कपट, करता है, मोह माया में इतना डूब जाता है, की पहले तो छोटे छोटे छल, कपट करता है, और जब उससे अपने परिवार को, खुद को सुख मिलता देखता है, तो फिर और बड़े कपट, छल करने लगता है, और इन सबके परिणाम स्वरूप खुद का जीवन, जो उसके साथी संगी होते हैं, उनका जीवन, अपने परिवार जनों का जीवन नरक में डालता है, लेकिन मोह माया के फांस मे फंसकर बड़ा खुश होता है,


भागवतिक शरीर भी वस्तुओ का भोग करता है, उसका भी परिवार होता है, लेकिन अंतर बस इतना है, की वो सब कुछ भगवान् को साक्षी मान कर उपभोग करता है, और जब भगवान् को साक्षी मान कर कार्य करता है, तो फिर किसी के साथ छल, कपट के विचार नहीं आते, गलत कार्य करने के विचार नहीं आते, गलत कार्य के सोच मात्र से डरता रहता है, और हर समय अपने किसी आराध्य भगवान् का नाम जप करता रहता है, फिर इस प्रकार के भक्त की सुरक्षा भगवान् करते हैं, और उसको गलत राह मे ईश्वर जाने ही नहीं देते है