आत्महत्या, महा भयंकर पाप


 आज के युग में भगवान की भक्ति के अलावा सब व्यर्थ है। इसी में हमें ध्यान लगाकर जीवन को सुधारना है। मनुष्य जीवन में यदि कोई आत्महत्या करता है, तो इससे बड़ा कोई पाप नहीं है। आत्महत्या करने वाले की आत्मा को 84 लाख योनियों में भटकना पड़ता है। मोक्ष के प्रवेश द्वार के लिए हर सांस में ईश्वर का नाम लेते रहना चाहिए। हमें अपने जीवन को संत और भगवान के कार्यों में अर्पण कर देना चाहिए। इसी से हमारी आने वाली पीढ़ियां भी तर जाएंगी।

आत्महत्या कानून के अनुसार तो गलत है ही , साथ ही गरुण पुराण में भी इसे महापाप माना गया है। कई लोग परिस्थियों से हार मानकर आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन ऐसा करके वह अपनी आत्मा के साथ ही बुरा कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि गरुण पुराण के अनुसार, आत्महत्या के बाद हमारी आत्मा को क्या-क्या सहना पड़ता है।


मनुष्य को जीवन भगवान ने सत्कर्म करने के लिए दिया है। ऐसे में आत्महत्या करना अर्थात अपने जीवन का नाश करना है। हिंदू धर्म के अनुसार, 52 अरब वर्ष एवं 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मानव शरीर मिलता है। सभी योनियों में से मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक मानव ही है जिसमें विवेक जैसा दुर्लभ गुण पाया जाता है। ऐसे में आत्महत्या करके अपने शरीर को गवाना एक पाप होने के साथ-साथ उस मनुष्य की मूर्खता है।

आत्महत्या करने वाला व्यक्ति सोचता है कि उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हैं। गरुण पुराण के अनुसार, जब कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है तो उसकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा को न तो स्वर्ग मिलता है और न ही नर्क। ऐसे में आत्मा अधर में लटक जाती है। इसलिए आत्महत्या के बाद आत्मा का सफर और भी कष्टकारी हो जाता है।