पूजा पाठ, कर्म पथ, नाम जप, आप जो भी विधा अपनाते हों, कुछ नया पाने के लिए, सब का अंतिम उद्देश्य है, परम शांति,
परम शांति तभी आपको अनुभव होगी, जब आप खुद को देखोगे, खुद में उतर जाओ, गहरे में, देखो की अंदर कितनी हलचल मची हुई है,
ईश्वर ने तुमको मन की हलचल खत्म करने के लिए वर्षों दिये, लेकिन आज आप जिस उम्र में हो, सोचो क्या हलचल खत्म हुई, क्या मन के द्वंद ने आपको विचलित करना बन्द कर दिया,
अगर हाँ, तो फिर वो आपने जिस प्रक्रिया से पा लिया, वही पूजा है, वही आराधना है, वही सब कुछ है, और अगर आपने खुद पर काबू नहीं पाया, तो आपका किया कराया सब बेकार, सोचो, 60 साल, 70 साल, 100 साल जो भी जितना भी आपका जीवन है, आप खुद को शांत नहीं कर पाए, फिर आपने पाया क्या, कुछ भी तो नहीं, जन्म तो इसी उद्देश्य से हुआ था, ईश्वर से यही वादा करके आये थे, की हे ईश्वर, संसार मे पहुँच कर मन की शांति पाकर ही रहूँगा, और ईश्वर ने भी आपसे वादा किया, की जाओ, मैं भी तुमको इस प्रक्रिया को प्राप्त करने में सहायता के लिए एक दो नहीं, सत्तर, अस्सी, सौ वर्ष जिंदगी के दे रहा हूँ, जिससे वाद में तुम मुझसे शिकवा न कर सको, की आपने समय ही कहाँ दिया, मन को शांत होने का,
आप ईश्वर से वादा करके आ गए, संसार में, और यहाँ आकर किया क्या, पूरा जीवन अशांत होने में ही लगा दिया, और अशांति में ही चले गये, और जिसके लिए जीवन भर अशांत रहे, वो सब यहीं रह गया,
जीवन में जो मिला है, उसको ईश्वर की नेमत समझो, उसको धन्यवाद दो, और कोशिश करो, की मन की शांति मिले, कोई रोक टोक नहीं, बहुत समय है, तरह तरह के प्रयोग भी कर सकते हो, पर इतना याद रखना, जीवन प्रयोगों में ही न निकल जाए, जिससे मन शांत हो, वो कार्य करो, पूजा पाठ, ध्यान, बेईमानी, मक्कारी, झूठ, सच, ईमान दारी, दया, करुणा, निर्दयता, अहंकार, निर्मलता, पैसा, दान, क्रोध, अपमान, सम्मान, प्रशंसा, नीचता, पद, प्रतिष्ठा, और भी जो आपको अच्छा लगे, मन को शांत कर सके, इसमें से जिससे मन शांत हो, उसी को जीवन में उतार लो,
ईश्वर ने जीवन बड़ा सरल बनाया था, उसने तो केवल प्रेम ही सिखाया, वो खुद प्रेमी है, उसने प्रकृति से प्रेम करना सिखाया, हमने क्या किया, लोगों से प्रेम करना सिखाया, हमने क्या किया, खुद से प्रेम करना सिखाया, हमने क्या किया, हमें तो केवल प्रेम ही करना था, सबसे, खुद से, मन से, भी, हमने प्रेम किया ही नहीं, कहीं दर्शाया भी, तो प्रेम का रोपण, स्वार्थ के भाव में, उसने भी अशांत ही किया,
खुद से प्रेम करना शुरू कर दीजिये, कैसे भी, खुद से अपार प्रेम करना शुरू कर दीजिये, और जहाँ प्रेम होता है, चरम सीमा का प्रेम, वहाँ ही ईश्वर होता है, और जहाँ ईश्वर होता है, वहाँ सब खुद शांत होता है, एक अपार सुकूंन, कोई कमी नहीं, संपूर्णता









