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कर्म फल क्या है

केतु ग्रह के खराब होने के लक्षण

राहु खराब होने के ये हैं लक्षण

तुम_हमेशा_ईश्वर_की_नज़र_में_हो

ईश्वर बड़ा या कैमरा "

भगवान कहाँ है, संसार मे जो कुछ प्राकृतिक है, वो सब भगवान की महिमा है, और जो कुछ कृत्रिम है, वो सब मानव (विज्ञान) की महिमा है,

निषिद्ध कर्म (नहीं करने योग्य कर्म)

किसी को इज्जत, सम्मान देना, उसकी मुसीबतों को कम करना, जरूर पर उसका साथ देना, सहजता से मिलना, बात करना, ये जीवन के अनमोल उपहार हैं, बाकी सब दिखावा है

खुद को अच्छा साबित करने की जरूरत नहीं है

अच्छाई बढ़ेगी, तो आपकी बुराई अपने आप कम हो जायेगी

ईमानदारी से कार्य करने का तात्पर्य यह है कि, मुझे जो भी कार्य करने को मिले उसे हम बिना किसी लोभ लालच के पूरा करें

परमेश्वर को भी किसी के हृदय में प्रेम बहुत मधुर लगता है। लेकिन वो सच्चा प्रेम होना चाहिए,

सत्य बहुमुखी प्रतिभा एवं कठिनतम साधना का प्रतीक है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य का विशेष महत्त्व है क्योंकि झूठ के बराबर दूसरा कोई पाप नहीं है।